40 साल में पहली बार भाजपा ने जीती थी ये सीट, ब्राह्मण-मुस्लिम वोटर है निर्णायक; सपा बनी हुई है चर्चा में

उत्तर प्रदेश में सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। उनमें से एक कानपुर की घाटमपुर सीट है। यहां की आब-ओ-हवा में चुनावी माहौल का असर दिखने लगा है। पार्टियां छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं कर रही हैं। सीएम योगी की रैली भी प्रस्तावित है। दरअसल, इस सीट से भाजपा पहली बार 2017 में जीती थी। विधायक कमला रानी को सीएम योगी ने अपनी कैबिनेट में जगह देकर मंत्री भी बनाया। लेकिन बीते दिनों उनका कोरोना के चलते आकस्मिक निधन हो गया। जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है। यहां 3 नवंबर को मतदान होना है, जबकि 10 नवंबर को रिजल्ट घोषित होगा।
भाजपा की है भाजपा से लड़ाई
घाटमपुर में 3 नवंबर को होने वाले उपचुनाव के मतदान को लेकर अगर हालिया स्थिति पर नजर डालें तो यह कहना बेहद कठिन है कि इस सीट पर किसकी जीत होगी और किसकी हार होगी? लेकिन यह तय है कि बीजेपी के लिए यह सीट बेहद कांटों भरी होने वाली है। उसके पीछे की मुख्य वजह टिकट वितरण है। घाटमपुर सीट पर चर्चा है कि कमला रानी की मृत्यु के बाद टिकट का दावेदार उनकी बेटी स्वप्निल वरुण को माना जा रहा था, लेकिन भाजपा ने तमाम कयासों को दरकिनार करते हुए उपेंद्र पासवान को टिकट दे दिया। जिसकी वजह से कमला रानी के समर्थक नाराज हैं। दरअसल, भाजपा ने अगर कमला रानी की बेटी को राजनीति में आगे मौका नहीं दिया तो इस परिवार का राजनीतिक अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा। हालांकि इन सबके बावजूद स्वप्निल ने बगावती तेवर नहीं अपनाए हैं। वहीं दूसरी तरफ उपेंद्र पासवान पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं, लेकिन पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि उनके सामने पिछली बार के सपा विधायक इंद्रजीत हैं। बताया जाता है कि सीट पर पहली लड़ाई भाजपा की भाजपा से है, फिर सपा से। ऐसे में सवाल यह है कि क्या भाजपा नेतृत्व अपनी जीत को बरकरार रख पाएगा?

सपा-बसपा-कांग्रेस में कौन मजबूत?
जमीनी हकीकत की बात की जाए तो जमीन पर सपा मजबूत दिख रही है। सपा ने स्टार प्रचारकों की लिस्ट तो जारी कर दी है, लेकिन अखिलेश यादव सरीखे नेता अभी यहां प्रचार के लिए नहीं पहुंचे हैं। लेकिन स्थानीय सपा के विधायक लगातार जनता से जनसंपर्क बना रहे हैं। वहीं, बसपा अपने कैडर वोट मजबूत करने के लिए जगह जगह मीटिंग तो कर रही है, लेकिन पिछले कई सालों से मिली हार और केंद्रीय नेतृत्व की हताशा ने पार्टी वर्कर्स को भी निराश कर रखा है। कांग्रेस कुछ जोर लगा रही है, लेकिन उनके कार्यकर्ताओं को भी एक पुश की जरूरत दिखाई पड़ रही है।
कौन-कौन उम्मीदवार?
पार्टी | उम्मीदवार |
भाजपा | उपेंद्रनाथ पासवान |
सपा | इंद्रजीत कोरी |
बसपा | कुलदीप शंखवार |
कांग्रेस | डॉक्टर कृपा शंकर |
ब्राह्मण-मुस्लिम हैं निर्णायक वोट
घाटमपुर विधानसभा में आंकड़ों के अनुसार 3,07,967 लाख मतदाता हैं। जिसमें 1,68,367 पुरूष तो 1,39,595 महिलाएं हैं। लेकिन जाति समीकरण के अनुसार इस सीट पर दलित वोटरों का बोलबाला है और अगर आंकड़ों पर नजर डालें इस सीट पर हार जीत का फैसला दलित के साथ साथ ब्राह्मण और मुस्लिम वोट ही करता है। जिसका ही नतीजा था कि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में घाटमपुर में इन दोनों जाति के मतदाता का रुझान बीजेपी के तरफ कमला रानी वरुण के चलते हो गया था और लंबे समय से घाटमपुर विधानसभा में बीजेपी का परचम लहराने का सपना भी पूरा हो गया था।
जाति | आंकड़ा |
दलित | 1,08,000 |
ब्राह्मण | 45,000 |
मुस्लिम | 28000 |
ठाकुर | 22000 |
यादव | 22000 |
कुशवाहा | 4200 |
निषाद | 22500 |
कुर्मी | 18000 |
पाल | 18000 |
अन्स | 20000 |
उपचुनाव से पहले बीजेपी ने खोला विकास का पिटारा
घाटमपुर विधानसभा सीट खाली होने के बाद इस सीट पर दोबारा कब्जा करने के लिए उप चुनाव की घोषणा से ठीक पहले बीजेपी की तरफ से दिग्गज नेता घाटमपुर विधानसभा का दौरा भी करने लगे थे। इसी दौरान डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने घाटमपुर से ही कई बड़े कार्यों का शिलान्यास करते हुए घाटमपुर में विकास के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोल दिया था और वही प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह जी घाटमपुर विधानसभा में कार्यकर्ताओं के साथ लगातार बैठक कर घाटमपुर सीट जीतने की कार्य योजना तैयार करते हुए नजर आ रहे थे।

1977 में हुआ था सीट का गठन, 40 साल बाद पहली बार जीती थी बीजेपी
1977 में घाटमपुर सीट का गठन हुआ था। पहली बार जनता पार्टी का विधायक यहां से जीता। उसके 40 साल बाद भाजपा 2017 में यहां पहली बार जीती थी। आलम यह था कि 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद जब 1993 में चुनाव हुए तब भी प्रचंड हिंदुत्व की लहर के बाद भी भाजपा यहां से नहीं जीत पाई थी। तब समाजवादी पार्टी ने पहली बार अपना परचम यहां से लहराया था। 1993 से 2002 तक लगातार तीन बार यह सीट सपा के ही खाते में रही। जबकि 2007 में यह सीट बसपा के हिस्से में चली गयी, लेकिन 2012 में यह सीट फिर सपा के खाते में गिर गयी।
1977 से 2017 के बीच कुछ ऐसा रहा है पार्टियों की जीत का आंकड़ा
पार्टी | कितनी बार हुई जीत |
भाजपा | 01 |
सपा | 04 |
बसपा | 01 |
कांग्रेस | 03 |
जनता पार्टी | 02 |
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