बलरामपुर में मां पाटेश्वरी देवी के दर्शन के लिए उमड़ी भक्तों की भीड़, सुबह से ही मंदिर में लगी कतार

उत्तर प्रदेश में बलरामपुर जिले से 28 किलोमीटर की दूरी पर तुलसीपुर क्षेत्र में स्थित 51 शक्तिपीठों में एक शक्तिपीठ देवीपाटन का अपना एक अलग ही स्थान है। नवरात्र के दौरान यहां दूर दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस कोरोना महामारी के बीच भी भक्तों की काफी भीड़ देखने को मिली। लोग सुबह से ही मंदिर में दर्शन के लिए पहुंच रहे थे। हालांकि इस दौरान न तो कहीं सोशल डिस्टेंसिंग दिखाई दी और न ही ज्यादातर लोग मास्क लगाए नजर आए।
नवरात्र में महाअष्टमी की पूजा अर्चना के लिए और मां के दर्शन के लिए सुबह से ही देवीपाटन मंदिर में भक्तों की भीड़ लगनी शुरू हो गई थी। लोग मंदिर में दर्शन करने पहुंच रहे थे। यहां आने वाले भक्तों ने माता के जयकारे लगाते हुए कहा कि मां के दरबार में आने के बाद उनका दर्शन पाने के बाद महामारी का समूल नाश हो जाएगा।

अपनी मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार इस शक्तिपीठ का सीधा सम्बन्ध देवी सती, भगवान शंकर और गोखक्षनाथ के पीठाधीश्वर गोरक्षनाथ जी से है। यह शक्तिपीठ सभी धर्म जातियों के आस्था का केन्द्र है। यहां देश-विदेश से तमाम श्रद्धालु माँ पटेश्वरी के दर्शन को आतें हैं। ऐसी मान्यता है कि माता के दरबार में मांगी गई हर मुराद पूर्ण होती है। कोई भी भक्त यहां से निराश नही लौटता है।

जानिए क्या है शक्तिपीठ देवीपाटन का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नी देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया था लेकिन उस यज्ञ में भगवान शंकर को आमंत्रित तक नही किया गया जिससे क्रोधित होकर व अपने पति भगवान शंकर के हुए अपमान के कारण यज्ञ कुण्ड में अपने शरीर को समर्पित कर दिया था।
इस बात की सूचना जब कैलाश पति भगवान शंकर को हुई तो वह स्वयं यज्ञ स्थल पहुंचे और भगवान शिव ने अत्यंत क्रोधित होकर देवी सती के शव को अग्नि से निकाल लिया और शव को अपने कंधे पर लेकर ताण्डव किया। जिसे पुराणों में शिव तांडव के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव के तांडव से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को विच्छेदित कर दिया। जिससे भगवान शिव का क्रोध शांत हो सका।
विच्छेदन के बाद देवी सती के शरीर के भाग जहां जहां गिरे वहां वहां शकितपीठों की स्थापना हुई। बलरामपुर जिले के तुलसीपुर क्षेत्र में ही देवी सती का वाम स्कन्द, पट के साथ यहीं गिरा था। इसीलिए इस शक्तिपीठ का नाम देवीपाटन पड़ा और यहां विराजमान देवी को मां पाटेश्वरी के नाम से जाना जाता है।

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